प्यारे बच्चों

कल सपने में देखा -मैं एक छोटी सी बच्ची बन गई हूं । तुम सब मेरा जन्मदिन मनाने आये हो । चारों ओर खुशियाँ बिखर पड़ी हैं ,टॉफियों की बरसात हो रही है । सुबह होते ही तुम में से कोई नहीं दिखाई दिया ।मुझे तो तुम्हारी याद सताने लगी ।

तुमसे मिलने के लिए मैंने बाल कुञ्ज के दरवाजे हमेशा के लिए खोल दिये हैं। यहाँ की सैर करते समय तुम्हारी मुलाकात खट्टी -मीठी ,नाटी -मोती ,बड़की -सयानी कहानियों से होगी । कभी तुम खिलखिला पड़ोगे , कभी कल्पना में उड़ते -उड़ते चन्द्रमा से टकरा जाओगे .कुछ की सुगंध से तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे ।

जो कहानी तुम्हें अच्छी लगे उसे दूसरों को सुनाना मत भूलना और हाँ ---मुझे भी वह जरूर बताना ।
इन्तजार रहेगा ----! भूलना मत - -

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

देवपुत्र अंक जुलाई 2017 में प्रकाशित





विश्व का सर्वाधिक प्रसारित बाल मासिक देवपुत्र अंक जुलाई 2017 में प्रकाशित मेरी कहानी 
आनन्द


    आज तो हमारे लिए बड़ी खुशी का दिन है। हमारे बेटे आनंद का शिशु वाटिका में दाखिला हो गया है । अरे राधा तुम किस सोच में पड़ गईं?” कुश ने कहा ।  
    “ हम दोनों के कार्यालय जाने का समय और शाला की बस के आने का समय एक ही है । दोनों के रास्ते अलग –अलग हैं । बस स्टॉप तक आनंद  को  कौन छोड़ने जाएगा । अकेला तो वह जा नहीं सकता।’’ 
    “अरे चिंता न करो, माँ जी सब सम्हाल लेंगी ।”
  “कैसे ?वे तो खुद छड़ी के सहारे चलती हैं । लगता है बच्चे के लिए एक नौकरानी रखनी पड़ेगी।  
    “हाँ ,इसके अलावा कोई चारा नहीं । पर उसके शाला जाने के पहले दिन तो छुट्टी ले लो। शायद तुम्हारी उसे जरूरत पड़ जाए।
    “कैसे ले लूँ । बैंक की नौकरी लगे एक माह ही तो हुआ है।”
    अनमने से आनंद के पिता कुश चुप हो गए।
    जल्दी ही हैपी की देखभाल के लिए चन्दा मिल गई जो उनके माली की बहन थी ।  आनंद को एक सप्ताह  बाद स्कूल जाना था पर उल्लास उसके अंग –अंग में फूट पड़ता था ।जिससे भी मिलता कहता –क्या तुम्हें मालूम हैं मैं शाला  जाने वाला हूँ । दादी के पास बैठा तो अपने सपनों का जाल बुनता रहता । दादी कहती –“बच्चे,तुझे स्कूल जाकर ,पढ़लिखकर बहुत बड़ा आदमी बनना है।” 
    “हाँ –हाँ दादी ,घबराओ नहीं ! मैं पेड़ की तरह बहुत बड़ा बनूँगा । फिर तुम मेरी  टहनियों पर बैठकर झूले की तरह झूलना।”
    “अरे बच्चे, जरा सोच तो -मैं टहनियों तक कैसे पहुँचूँगी ?”
    “ओहो ! दादी माँ देखो मैं इतना झुक जाऊंगा।” आनंद उनके पैरो को छूकर कहता।  
    दादी माँ तो निहाल हो जाती।
    “तू ओर क्या करेगा रे मेरे लिए।”
    “मैं –मैं बड़ा होकर एक बड़ी सी चिड़िया बनाऊँगा।”
    “चिड़िया !चिड़िया का मैं क्या करूंगी ?”
    “ओह सुनो तो –उस पर मेरी दादी माँ बैठकर जहां चाहेगी उड़ जाएगी फिर इस छड़ी की जरूरत नहीं पड़ेगी।”
     “हा –हा –खूब कहा !वह तो  मेरा उड़नखटोला हो गया।”
    दादी –पोते की बातें खतम ही न होतीं अगर राधा आकर उन्हें न टोकती-“ आनंद ,कल तो तुम्हें स्कूल जाना है । जल्दी सोना भी है।”  
    बिना आनाकानी किए वह माँ के साथ सोने चल दिया ।
    अगले दिन राधा जल्दी उठी । बेटे को तैयार कर उसने उसकी मनपसंद के पकौड़े बनाए और टिफिन लगा दिया । इतने में चन्दा आ गई ।
    “चन्दा तू समय  पर आ गई ।शाला की बस भी आती होगी ।आनंद को छोड़ने जा।”
    आनंद ठिठक गया और लगा माँ को घूरने।
   “क्या हो गया। शाला क्यों नहीं जाता । अभी तो तू खुश नजर आ रहा था।”
    “मैं नहीं जाऊंगा।”
    “क्यों नहीं जाएगा?”
    “आप छोड़ने चलो।”
    “मैं –मैं कैसे जा सकती हूँ । मुझे कार्यालय जाना  है। देरी हो जाएगी । चंदा के साथ ही तुम्हें जाना होगा।”
    चंदा उसका हाथ पकड़े बाहर निकली और खींचती हुई ले जाने लगी । वह डरी हुई थी कि कहीं बस न छूट जाए । आनंद का शाला जाने का सारा उत्साह फीका पड़ गया । पहली बार वह इस तरह काफी देर के लिए माँ –बाप से अलग हो रहा था। चाहता था माँ से नमस्ते करते हुए बस में चढ़े और माँ उसकी चुम्बी ले। वह  अपने को किसी तरह बस की ओर घसीट रहा था ,लग रहा था मानो दोनों पैरों से 1-1 किलो के पत्थर लटक रहे हैं।  
    बस स्टॉप पर आनंद  ने देखा - कोई दोस्त अपनी माँ के साथ आ रहा है तो कोई बतियाते हुये अपने बाबा का हाथ थामे हुये हैं । उसके दिल में कुछ चुभ सा गया और उदासी की परतें गहरी हो गईं । । वह बस में बैठ तो गया लेकिन जैसे ही बस चली उसकी रुलाई फूट पड़ी ।
    बच्चों का ध्यान रखने के लिए बस में हमेशा कुंती रहती थी। उसने कुछ देर तक तो फुसलाया –“बेटा चुप हो जा शाला  में तुझे सब बहुत प्यार करेंगे।” लेकिन जब आनंद  ने चुप होने का नाम नहीं लिया तो गुर्रा पड़ी –“अरे चुप हो जा वरना अभी बस से नीचे उतार दूँगी।”
    आनंद भयभीत हो चुप तो हो गया पर स्कूल तक सिसकियां भरता रहा ।
    शाला में कुछ बच्चे माँ से अलग होने के कारण दुखी थे,कुछ नए वातावरण से घबराए हुए थे पर आनंद  तो कुछ और ही कारण उदास था।वह सोचने लगा –माँ उसे प्यार नहीं करती । इसीलिए तो वह बस तक नहीं छोडने आई। माँ की मजबूरी समझने के लायक उसकी उम्र न थी। बस उसे तो चन्दा की जगह माँ चाहिए थी ।
    कक्षा में शिक्षिका ने हँस-हँस कर नन्हें –मुन्नों का स्वागत किया । एक –दूसरे की तरफ दोस्ती के कोमल हाथ बढ्ने लगे । कुछ देर के लिए आनंद  सब कुछ भूलकर नए साथियों में मग्न हो गया ।
    टिफिन का समय होने पर आवाज लगी –बच्चों नैपकिन निकालकर अपना –अपना टिफिन खाओ। कुछ ने अपना टिफिन बॉक्स खोला ,कुछ की मदद की गई पर आनंद  गुम सा बैठा रहा । पास बैठी एक छोटी बच्ची ने अपने टिफिन में से सेव का एक टुकड़ा उठाया और आनंद की ओर बढ़ाते हुए मैना की सी आवाज में बोली-“भैया ,खा लो ,भूख लगेगी।”आनंद  ने उसके स्नेह को देख झट से मुँह खोल दिया और माँ की मीठी –मीठी याद आने लगी ।
    इतने में घंटी बज गई और आनंद  भूखा ही रह गया ।
    शाला की छुट्टी होने पर,माँ  मिलने की खुशी में बच्चों के चेहरे कमल की तरह खिले हुए थे। बस स्टॉप आने से पहले ही आनंद  माँ की एक झलक पाने को खिड़की से झाँक -झाँक कर देख रहा था । माँ की जगह चन्दा को खड़ा देख वह मन ही मन उबल पड़ा ।
    बस रुकने पर बोला –“मैं नहीं उतरूँगा।”बस की आया ने उसे जबर्दस्ती उतारा और चन्दा एक हाथ पकड़कर उसे बाहर की ओर खींचने लगी । इस खींचातानी में उसके कंधे में झटका लगा और वह दर्द से चीख पड़ा । नौकरानी ने उसे गोद में लेना चाहा पर वह तो  रोता हुआ उसके हाथों से सरककर भाग निकला । आगे –आगे आनंद  पीछे –पीछे चन्दा । बच्चे की तरह तो वह क्या भागती –हाँ भागते –भागते हाँफने जरूर लगी ।
    पोते के रोने की आवाज सुन दादी माँ तड़प उठी ।
    “दादी –दादी मेरे हाथ में बहुत दर्द हो रहा है। कहकर उससे चिपट गया मानो एक अरसे के बाद मिला हो । प्यार की गरमाई पा वह दादी के बिछौने पर भूखा ही सो गया ।
    चन्दा भी आनंद के दर्द को देख परेशान थी । उसे अपनी नौकरी खतरे में नजर आई। उस समय तो उसने जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल जाना ठीक समझा। आनंद के माँ-पिता के आते ही बोली –“मुझे थोड़ा जल्दी घर जाना है।” 
    “ठीक है ,मैं तो आ ही गई हूँ पर कल समय से आ जाना।
    राधा की हाँ में हाँ मिलाते हुए चंदा तो वहाँ से खिसक गई ।
  कुछ देर बाद आनंद  सोकर उठा । पिता  ने प्यार से उठाना चाहा पर वह तड़प उठा –पिता जी  बहुत दर्द ---।
    राधा भागी –भागी आई –“क्या हुआ बेटा !”
    “चन्दा ने मेरा हाथ बहुत ज़ोर से खींचा । माँ तुम बस स्टॉप पर मुझे लेने आ जाती तों ऐसा नहीं होता । आप मुझे प्यार नहीं करती हो इसीलिए तो नहीं आईं। माँ ,कल मुझे छोड़ने चलोगी ---बोलो न माँ ।” आनंद  का गला भर्रा उठा ।
    बेटे के दुख से भरी आवाज सुन राधा व्याकुल हो उठी और आनंद को कलेजे से चिपकाते हुए बोली –“हाँ बेटा जरूर चलूँगी।”
    “मज़ाक करती हो !कैसे छोडने जाओगी ?अभी –अभी तो कार्यालय जाना शुरू किया है । नहीं गईं तो अधिकारी  नाराज हो जाएँगे।”आनंद  के पिता  ने मुस्कुराते हुए चुटकी ली।  

    “नाराज होने दो । मुझे उसकी चिंता नहीं !चिंता है अपने आनंद की । उसके लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।” वाक्य पूरा होते ही खुशियाँ घर की देहली पार कर अंदर आ गईं।  




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